Tuesday 6 December 2011

कविता

पहचान 

 

 

परिस्थिति का कोई भरोसा नहीं
कब किधर मुड़ जाये
अब देखो
उस बेबस, बेसहारा महिला को
गरीबी से मार खाती
जिसके इंतजार में
अपना एक-एक दिन गिना
जिसको अपने गर्भ में नहीं
दिल में रखा
आते ही दुनिया में
रख दिया उसे
कूड़ेदान में
उस नन्हे की आवाज़
सुन जैसे हो जाता मन निर्मल शांन्त
लेकिन कोई नहीं उसको पहचान देने वाला
वह अपने आस-पास खड़े लोगो में
खोज रहा अपनी माँ को
पुकार रहा….
माँ आओ
आओ ना
मुझे मेरी पहचान दो |
 
अजीत

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