Monday 19 December 2011

कथा

कोख की विडम्बना 

सीपी का हक
स्वाति की बूँद भर
कीमत मोती गढ़ने तक
फिर खाली सीपी
सूखा तट |

स्त्री की कोख की विडम्बना पर बहुत पहले यह कविता लिखी थी और आज कलर्स पर ‘बालिका-वधू’की ‘फूली’चीख रही है –‘मेरा बेटा मुझे दे दो ||मैंने नौ महीने उसे कोख में रखा |अपने रक्त से सींचा |उस पर मेरा हक ज्यादा है |वह मेरी आँखों का सपना है ..उम्मीद है खुशी है ..मैं उसके बिना नहीं जी सकती |’वह पति-सास,पड़ोसिनों सबसे फरियाद करती है,रोती-गिड़गिड़ाती है,अनकिये अपराधों के लिए भी माफ़ी मांगती है,पर कोई नहीं सुनता |सताई गयी स्त्री की आवाज भला कौन सुनता है?पड़ोसिनों के लिए यह ‘दूसरे घर का मामला’ है,तो पति और सास की यह सोची-समझी रणनीति|फूली बाल-विधवा थी |’नाता-प्रथा’से इस घर में लाई गयी थी |’नाता-प्रथा’समाज द्वारा मान्य वह प्रथा है,जिसमें विवाहित पुरूष बिना विवाह के किसी स्त्री [विधवा या किसी वजह से अकेली]को घर लाता है |उससे स्त्री व सन्तान-सुख प्राप्त करता है |पर स्त्री को समाज और कानून से कोई सुरक्षा नहीं मिलती,वह पूरी तरह पति और उसके परिवार पर निर्भर होती है |वे चाहें उसे आजीवन रखे या घर से निकाल दें|वह किसी अधिकार का दावा नहीं कर सकती |फूली का तब तक मान-सम्मान किया जाता है,जब तक वह घर को वारिस नहीं दे देती |उसके बाद ही उसके खिलाफ षड्यंत्र शुरू हो जाता है |पहले बच्चे को ऊपर के दूध की आदत डाली जाती है,फिर एक दिन ब्याहता पत्नी को बच्चा सौंप दिया जाता है |फूली के विरोध पर पति उसे पीटते हुए कहता है –‘ऐसी औरतें सिर्फ नाते लायक होती है,घर बसाने लायक नहीं |’ सास एक औरत होने के बावजूद कहती है –अभी जवान हो,जैसे हम नाते पर लाए थे,वैसे कोई और ले जाएगा |
इतना अपमान!इतनी अमानवीयता!इतना निर्मम प्रहार! क्या इसलिए कि फूली एक बाल-विधवा थी?भारतीय समाज में प्राचीन काल से ही विधवा निकृष्टतम प्राणी मानी जाती रही है,भले ही वह बचपन में ही विधवा हो गयी हो |बाल-विधवा से जीवन के सारे रंग छीन लिए जाते थे |उसके सामने बस दो ही विकल्प थे |या तो वह तीर्थ-स्थान पर रहकर संन्यासिनी का जीवन जीये या समाज में रहकर कठोर नियमों का पालन करे| इसके पूर्व एक और रास्ता था -सती बन जाने का ,पर उसपर रोक लगा दिया गया था |बाल-विधवाएं ना तो समाज में चैन से जी पाती थीं,ना ही तीर्थ-स्थानों पर |दोनों जगह उनकी दुर्दशा थी | संयम-नियम के बावजूद उन्हें जवान तो होना ही होता था|और जवान होते ही उन पर कहर टूट पड़ता था |अपने ही घर-परिवार के मर्द और  बाहर के शोहदे जब-तब उनसे छेड़खानी या बलात्कार करते रहते थे |और बात खुलने पर सारा दोष उन्हीं के सिर पर मढ़ देते थे|तीर्थ-स्थानों पर पंडे उनका शोषण करते थे|उनसे वेश्यावृति तक कराई जाती थी | आज भी तीर्थ-स्थानों पर विधवाएं बुरी अवस्था में हैं |उनके श्रम का भरपूर शोषण किया जाता है |सिर्फ वृन्दावन में ही इस समय तीन हजार १०५ निस्सहाय विधवाएँ हैं,जो मंदिरों में भजन-गायन करके जीवन-यापन करती है |पर प्रतिदिन आठ घंटे भजन गायन करने पर उन्हें मात्र छह से आठ रूपये मात्र मिलते हैं |इससे उनकी दयनीयता की सहज ही कल्पना की जा सकती है |यह अच्छी खबर है कि केन्द्र-सरकार विधवाओं के भजन-गायन को न्यूनतम मजदूरी से जोड़ने जा रही है और उत्तर-प्रदेश सरकार से भी यह करने को कहा गया है |अब यह हो जाए तो बड़ी बात होगी |अभी तो उनकी हालत ऐसी है कि उनकी दुर्दशा  देखकर हाल में ही वृन्दावन आई भूतपूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर की पत्नी रो पड़ी |उनका कहना था कि यहाँ के एन.जी.ओ भी सक्रिय नहीं हैं |यह विडंबना नहीं तो और क्या है कि १८५६ में भी अपने ‘राज्य-हड़प’नीति के लिए कुख्यात लार्ड डलहौजी तक भारत की विधवाओं की बुरी स्थिति से द्रवित होगया था|उसने ही ‘विधवा-पुनर्विवाह अधिनियम [१८५६]को पारित किया,जोकि ईश्वरचंद विद्यासागर की महान उपलब्धि मानी गयी थी |विदेशी भी जिन विधवाओं की बुरी हालत से द्रवित हो जाते हैं,उनसे उनके ही अपने मुँह फेरे रहते हैं |दया-ममता के लिए सुविख्यात इस देश के लोगों की इस संवेदनहीनता को क्या नाम दिया जाए|
आज भी स्त्रियों की दशा में खास सुधार नहीं हैं |कोख की आजादी वह प्राप्त नही कर पाई है |यदि यह आजादी मिल गयी होती,तो ना तो इतने कन्या-भ्रूण मारे जाते,ना ही उसे अपनी कोख किराए पर देनी पड़ती |जो लोग यह कहते हैं कि इसमें स्त्री की अपनी इच्छा शामिल हैं,वे स्त्री को सही ढंग से नहीं जानते | कोई भी स्त्री ममता-रहित होकर सिर्फ पैसे के लिए अपनी कोख में शिशु सृजित नहीं कर सकती |अगर कोई ऐसा करती है,तो ऐसी मजबूरी समाज के मुँह पर तमाचा है |इस समाज ने स्त्री को अपनी कोख के बारे में कभी निर्णय नहीं लेने दिया |याद करें,कुंती ने इस विषय में स्वतंत्रता का परिचय दिया,तो उसका क्या परिणाम हुआ ?अपने प्रेम-परिणाम कर्ण का उसे परित्याग करना पड़ा,पर वहीं पति की सहमति से तीन अन्य पुरूषों से संतान प्राप्ति पर उसे गौरवान्वित किया गया |नैतिकता के मानदंड सत्ताधारी के हिसाब से बदल कैसे जाते है ? माधवी के बारे में सोचकर तो मन तड़प ही जाता है |माधवी को उसके पिता ने ऋषि को इसलिए सौंप दिया था कि दान देने के लिए श्यामवर्णी घोड़े कम पड़ गए थे |उनका कहना था कि विभिन्न राजाओं के पास माधवी को रेहन रखकर वे उसके बदले घोड़ें प्राप्त कर लें|यही किया गया,पर माधवी को ब्याज के रूप में राजाओं को संतान भी देनी पड़ी | कल्पना करें –अपनी संतान का मोह त्याग कर जब माधवी राजा-दर-राजा सफर करती होगी ,तो कैसा लगता होगा उसे ?कितना तड़पती होगी मन ही मन ..छटपटाती होगी |फूली भी तड़प रही है..छटपटा रही है |क्या कोख होना स्त्री की सजा है ?नहीं तो इस सजा से स्त्री को मुक्ति कैसे मिलेगी ?




रंजना जायसवाल

Friday 16 December 2011

सम्मान


आकांक्षा यादव कोडा0 अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान-2011


       
         भारतीय दलित साहित्य अकादमी ने युवा कवयित्री, साहित्यकार एवं चर्चिर ब्लागर आकांक्षा यादव को  ‘डा0 अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान-2011’  से सम्मानित किया है। आकांक्षा यादव को यह सम्मान साहित्य सेवा एवं सामाजिक कार्यों में रचनात्मक योगदान के लिए प्रदान किया गया है। उक्त सम्मान भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा 11-12 दिसंबर को दिल्ली में आयोजित 27 वें राष्ट्रीय दलित साहित्यकार सम्मलेन में केंद्रीय मंत्री फारुख अब्दुल्ला द्वारा प्रदान किया गया.

     गौरतलब है कि आकांक्षा यादव की रचनाएँ देश-विदेश की शताधिक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित हो रही हैं. नारी विमर्श, बाल विमर्श एवं सामाजिक सरोकारों सम्बन्धी विमर्श में विशेष रूचि रखने वाली आकांक्षा यादव के लेख, कवितायेँ और लघुकथाएं जहाँ तमाम संकलनो / पुस्तकों  की शोभा बढ़ा रहे हैं, वहीँ आपकी तमाम रचनाएँ आकाशवाणी से भी तरंगित हुई हैं. पत्र-पत्रिकाओं के साथ-साथ अंतर्जाल पर भी सक्रिय आकांक्षा यादव की रचनाएँ इंटरनेट पर तमाम वेब/-पत्रिकाओं और ब्लॉगों पर भी पढ़ी-देखी जा सकती हैं. व्यक्तिगत रूप से शब्द-शिखर  और युगल रूप में बाल-दुनिया , सप्तरंगी प्रेम  उत्सव के रंग  ब्लॉग का संचालन करने वाली आकांक्षा यादव सिर्फ एक साहित्यकार के रूप में प्रतिष्ठित हैं, बल्कि सक्रिय ब्लागर के रूप में भी उन्होंने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है. 'क्रांति-यज्ञ: 1857-1947 की गाथापुस्तक का कृष्ण कुमार यादव के साथ संपादन करने वाली आकांक्षा यादव के व्यक्तित्व-कृतित्व पर वरिष्ठ बाल साहित्यकार डा0 राष्ट्रबन्धु जी ने  ‘‘बाल साहित्य समीक्षा‘‘ पत्रिका का एक अंक भी विशेषांक रुप में प्रकाशित किया है।

मूलत: उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ और गाजीपुर जनपद की निवासी आकांक्षा यादव वर्तमान में अपने पतिदेव श्री कृष्ण कुमार यादव के साथ अंडमान-निकोबार में रह रही हैं और वहां रहकर भी हिंदी को समृद्ध कर रही हैं. श्री यादव भी हिंदी की युवा पीढ़ी के सशक्त हस्ताक्षर हैं और सम्प्रति अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के निदेशक डाक सेवाएँ पद पर पदस्थ हैं. एक रचनाकार  के रूप में बात करें तो सुश्री आकांक्षा यादव ने बहुत ही खुले नजरिये से संवेदना के मानवीय धरातल पर जाकर अपनी रचनाओं का विस्तार किया है। बिना लाग लपेट के सुलभ भाव भंगिमा सहित जीवन के कठोर सत्य उभरें यही आपकी लेखनी की शक्ति है। उनकी रचनाओं में जहाँ जीवंतता है, वहीं उसे सामाजिक संस्कार भी दिया है।

इससे पूर्व भी  आकांक्षा यादव को विभिन्न साहित्यिक-सामाजिक संस्थानों द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। जिसमें  भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा  ‘वीरांगना सावित्रीबाई फुले फेलोशिप सम्मान‘, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वाराभारती ज्योति’, ‘‘एस0एम0एस0‘‘ कविता पर प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा पुरस्कार, इन्द्रधनुष साहित्यिक संस्था, बिजनौर द्वारा ‘‘साहित्य गौरव‘‘ ‘‘काव्य मर्मज्ञ‘‘, श्री मुकुन्द मुरारी स्मृति साहित्यमाला, कानपुर द्वारा ‘‘साहित्य श्री सम्मान‘‘, मथुरा की साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था ‘‘आसरा‘‘ द्वारा ‘‘ब्रज-शिरोमणि‘‘ सम्मान, मध्यप्रदेश नवलेखन संघ द्वारा ‘‘साहित्य मनीषी सम्मान‘‘ ‘‘भाषा भारती रत्न‘‘, छत्तीसगढ़ शिक्षक-साहित्यकार मंच द्वारा ‘‘साहित्य सेवा सम्मान‘‘, देवभूमि साहित्यकार मंच, पिथौरागढ़ द्वारा ‘‘देवभूमि साहित्य रत्न‘‘, राजेश्वरी प्रकाशन, गुना द्वारा ‘‘उजास सम्मान‘‘, ऋचा रचनाकार परिषद, कटनी द्वारा ‘‘भारत गौरव‘‘, अभिव्यंजना संस्था, कानपुर द्वारा ‘‘काव्य-कुमुद‘‘, ग्वालियर साहित्य एवं कला परिषद द्वारा ‘‘शब्द माधुरी‘‘, महिमा प्रकाशन, दुर्ग-छत्तीसगढ द्वारामहिमा साहित्य भूषण सम्मान’ , अन्तर्राष्ट्रीय पराविद्या शोध संस्था, ठाणे, महाराष्ट्र द्वारा ‘‘सरस्वती रत्न‘‘, अन्तज्र्योति सेवा संस्थान गोला-गोकर्णनाथ, खीरी द्वारा श्रेष्ठ कवयित्री की मानद उपाधि. जीवी प्रकाशन, जालंधर द्वारा 'राष्ट्रीय भाषा रत्नइत्यादि शामिल हैं

 दुर्गविजय सिंह 'दीप'
उपनिदेशक- आकाशवाणी (समाचार)
पोर्टब्लेयर, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह.