Thursday 27 September 2012

एफ.डी.आई के खिलाफ कन्फैडरेशन ने व्यापाक राष्ट्रीय आन्दोलन की घोषणा


रिटेल व्यापार में एफ.डी.आई. को अनुमति देने के विरोध में देश के लगभग 20 राज्यों के व्यापारी नेताओं ने आज नई दिल्ली में जन्तर-मन्तर पर एक धरने में विरोध प्रदर्शन करते हुए अपने मुँह के ऊपर काली पट्टीयां बांध रखी थी और अपने हाथों को जंजीरों से बांधकर ताला लगया हुआ था। जिससे यह संदेश दिया गया कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के आने के बाद भारत का रिटेल व्यापार उनका बंधक बन जाएगा और वो अपना एकाधिकार जमाते हुए रिटेल व्यापार पर कब्जा़ करेंगे। धरने का आयोजन कन्फैडरेशन आफ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने किया। धरने पर ही एक अलग परिदृश्य में झाँकी के रूप में सरकार को वैंटीलेटर पर लैंटे हुए दिखाया गया जो रिटेल व्यापार का खून चूस रही है। जिससे व्यापारियों का व्यापाक विरोध प्रर्शित हो रहा था। नेशनल हाकर्स फैडरेशन के बड़ी संख्या में हाकर्स ने भी व्यापारियों के धरने में शामिल होते हुए अपने सिरे पर सब्जी एवं फल आदि कि टोकरियाँ रखी हुई थी। लेकिन वहाँ पर कोई ग्राहक नहीं था जो यह दर्शाता है कि विदेशी कम्पनियों के आने के बाद देश के लाखों हाकर्स भी बेरोज़गार हो जाएंगे धरने का नेतृत्व कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री बी.सी.भरतिया ने किया।
धरने में जंतर-मंतर पर व्यापारियों ने एक विरोध धरना दिया जिसमें व्यापारी एफ.डी.आई. के खिलाफ नारे लगा रहे थे और ”खुदरा बाजार में विदेशी निवेश - गुलाम बनेगा अपना देश“, ”विदेशी कम्पनियाॅं आएगी-मंहगाई दहेज में लाएगी“, ”हम सामान बेचते है-सम्मान नहीं“, ”रिटेल व्यापार में एफडीआई- वापिस लो, वापिस लो“ जैसे नारों की तख्तियाॅं व्यापारियों ने अपने हाथो में पकड़ी हुई थी। कन्फैडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष बी.सी.भरतिया तथा राष्ट्रीय महामंत्री श्री प्रवीन खण्डेलवाल ने बताया कि कल नई दिल्ली में हुई देशभर केव्यापारी नेताओं की बैठक में रिटेल व्यापार में एफ.डी.आई के खिलाफ राष्ट्रव्यापी आन्दोलन को और तेजी से चलाया जाएगा। बैठक में यह भी निर्णय हुआ कि इस आन्दोलन में किसानों, हाकर्स, टेªड यूनियन, ट्राँसपोर्टर, स्वरोजगार करने वाले लोग तथा रिटेल व्यापार से जूडे़ अन्य वर्गो के संगठनों साथ लेकर आन्दोलन को व्यापक रूप दिया जाएगा। उन्होंने आगामी 3 महीने की रणनीति का खुलासा करते हुए बताया कि 1 अक्टूबर, 2012 तक देशभर में व्यापारी “मिलये अपने सांसद और विध्ाायक से।” अभियान चलाया जाएगा जिसमें उनकों ज्ञापन सोंपे जाएंगे उधर दूसरी ओर राष्ट्रपिता महात्मागाँधी जी के जन्मदिवस 2 अक्टूबर को
देशभर में व्यापारी “सदबुद्धि दिवस” के रूप में मनाएंगें और अपने-अपने शहरों में गाँधीजी की प्रतिमा पर एकत्रित होकर सरकार को सदबुद्धि देने की प्रार्थना करेंगे। दशहरे से एक दिन पूर्व 23 अक्टूबर को देशभर में एफ.डी.आई. रूपी रावण के पुतले का दहन किया जाएगा। श्री भरतिया एवं श्री खण्डेलवाल ने बताया कि नवम्बर महीने को “राष्ट्रीय जागरण मास” के रूप मनाते हुए देशभर में सेमीनार, वर्कशाप, मार्कीटों
में व्यापारीयों की बैठक, विरोध मार्च, धरने एवं प्रदर्शन आयोजित किए जाएंगें। जिसके द्वारा लोगो को बताया जाएगा कि किस प्रकार बहुराष्ट्रीयकम्पनियाँ देश की अर्थव्यवस्था और रिटेल व्यापार के लिए घातक होंगी।
उन्होंने यह भी बताया की इस मुद्दे पर नई दिल्ली में एक महारैली करने का भी निर्णय लिया गया है जिसमें रिटेल व्यापार से जूडे़ सभी वर्गशामिल होंगे। रैली की तारीख तय करने एवं आन्दोलन में सहभागिता को लेकर व्यापारियों, किसानों, हाकर्स, ट्राँसपोर्टर, तथा अन्य वर्गाे कीएक बैठक आगामी 9 अक्टूबर को नई दिल्ली में होगी। उन्होंने यह भी बताया कि आगामी 3 महीने में सभी राज्यों में राज्य स्तरीय सम्मेलन होंगे व्यापारी प्रतिनिधि मंडल देश के सभी राज्यों के मुख्यमंत्री तथा काॅग्रेस सहित सभी राजनैतिक दलों के प्रमुख नेताओं से मिलकर ज्ञापन देते हुए इस मुद्दे पर समर्थन का आग्रह करेंगे। उन्होंने यह भी बताया कि संसद के शीतशत्र में जिस दिन भी किसी भी दल द्वारा इस मुद्दे पर कोई प्रस्ताव लाया जाएगा उस दिन देशभर में व्यापारी
विरोध मार्च करेंगे। व्यापारी नेताओं ने कुछ काॅग्रेसी नेताओं द्वारा व्यापारियों को एक राजनैतिक दल से संबंधित होने के वक्तवय पर गहरीआपति जताई है। उन्होंने स्पष्ट करते हुए कहा कि व्यापारियों के मुद्दे विशुद्ध रूप से गैर राजनैतिक है और व्यापारियों पर किसी प्रकार काआरोप लगाने का अधिकार किसी को नहीं है। कन्फैडरेशन की नेशनल गर्वनिंग काँउसिल की अगली बैठक 16-17 दिसम्बर को जयपूर का जाएगा लेकर अगले वर्ष की रणनीति तय कि जाएगी।

Tuesday 25 September 2012

कहानी

   चांद  की  सैर

एक शाम वीरू काम से लौट कर अपने घर में टीवी पर समाचार देख रहा था। हर चैनल पर मारपीट, हत्या, लूटपाट और सरकारी घौटालों के अलावा कोई ढंग का समाचार उसे देखने को नही मिल रहा था। इन खबरों से ऊब कर वीरू ने जैसे ही टीवी बंद करने के रिर्मोट उठाया तो एक चैनल पर बेै्रकिंग न्यूज आ रही थी कि वैज्ञनिकों ने दावा किया है कि उन्हें चांद पर पानी मिल गया है। इस खबर को सुनते ही वीरू ने पास बैठी अपनी पत्नी बंसन्ती से कहा कि अपने षहर में तो आऐ दिन पानी की किल्लत बहुत सताती रहती है, मैं सोच रहा हॅू कि क्यूं न ऐसे मैं चांद पर ही जाकर रहना षुरू कर दूं। बंसन्ती ने बिना एक क्षण भी व्यर्थ गवाएं हुए वीरू पर धावा बोलते हुए कहा कि कोई और चांद पर जायें या न जायें आप तो सबसे पहले वहां जाओगे। वीरू ने पत्नी से कहा कि तुम्हारी परेषानी क्या है, तुम्हारे से कोई घर की बात करो या बाहर की तुम मुझे हर बात में क्यूं घसीट लेती हो। वीरू की पत्नी ने कहा कि मैं सब कुछ जानती हॅू कि तुम चांद पर क्यूं जाना चाहते हो? कुछ दिन पहले खबर आई थी चांद पर बर्फ मिल गई है और आज पानी मिलने का नया वृतान्त टीवी वालों ने सुना दिया है। मैं तुम्हारे दारू पीने के चस्के को अच्छे से जानती हॅू। हर दिन षाम होते ही तुम्हें दारू पीकर गुलछर्रे उड़ाने के लिये सिर्फ इन्हीं दो चीजो की जरूरत होती है। अब तो सिर्फ दारू की बोतल अपने साथ ले जा कर तुम चांद पर चैन से आनंद उठाना चाहते हो।

वीरू ने बात को थोड़ा संभालने के प्रयास में बंसन्ती से कहा कि मेरा तुम्हारा तो जन्म-जन्म से चोली-दामन का साथ है। मेरे लिये तो तुम ही चांद से बढ़ कर हो। बंसन्ती ने भी घाट-घाट का पानी पीया हुआ है इसलिये वो इतनी जल्दी वीरू की इन चिकनी-चुपड़ी बातों में आने वाली नही थी। वीरू द्वारा बंसन्ती को समझाने की जब सभी कोषिषें बेकार होने लगी तो उसने अपना आपा खोते हुए कहा कि चांद की सैर करना कोई गुडियों का खेल नही। वैसे भी तुम क्या सोच रही हो कि सरकार ने चांद पर जाने के लिये मेरे राषन कार्ड पर मोहर लगा दी है और मैं सड़क से आटो लेकर अभी चांद पर चला जाऊगा। अब इसके बाद तुमने जरा सी भी ची-चुपड़ की तो तुम्हारी हड्डियां तोड़ दूंगा। वैसे एक बात बताओ कि आखिर तुम क्या चाहती हो कि सारी उम्र कोल्हू का बैल बन कर बस सिर्फ तुम्हारी सेवा में जुटा रहूं। तुम ने तो कसम खाई हुई है कि हम कभी भी कहीं न जायें बस कुएं के मैंढ़क की तरह सारा जीवन इसी धरती पर ही गुजार दें।

बसन्ती के साथ नोंक-झोंक में चांद की सैर के सपने लिए न जाने कब वीरू नींद के आगोष में खो गया। कुछ ही देर में वीरू ने देखा कि उसने चांद पर जाने की सारी तैयारियां पूरी कर ली है। वीरू जैसे ही अपना सामान लेकर चांद की सैर के लिये निकलने लगा तो बंसन्ती ने पूछा कि अभी थोड़ी देर पहले ही चांद के मसले को लेकर हमारा इतना झगड़ा हुआ है और अब तुम यह सामान लेकर कहां जाने के चक्कर में हो? वीरू ने उससे कहा कि तुम तो हर समय खामख्वाह परेषान होती रहती हो, मैं तो सिर्फ कुछ दिनों के लिये चांद की सैर पर जा रहा हॅू। वो तो ठीक है लेकिन पहले यह बताओ कि जिस आदमी ने दिल्ली जैसे षहर में रहते हुए आज तक लालकिला और कुतबमीनार नही देखे उसे चांद पर जाने की क्या जरूरत आन पड़ी है? इससे पहले की वीरू बंसन्ती के सवालों को समझ कर कोई जवाब देता बंसन्ती ने एक और सवाल का तीर छोड़ते हुए कहा कि यह बताओ कि किस के साथ जा रहे हो। क्योंकि मैं तुम्हारे बारे में इतना तो जानती हॅू कि तुममें इतनी हिम्मत भी नही है कि अकेले रेलवे स्टेषन तक जा सको, ऐसे में चांद पर अकेले कैसे जाओगे? मुझे यह भी ठीक से बताओ कि वापिस कब आओगे?

बंसन्ती के इस तरह खोद-खोद कर सवाल पूछने पर वीरू का मन तो उसे खरी-खरी सुनाने को कर रहा था। इसी के साथ वीरू के दिल से यही आवाज उठ रही थी कि बंसन्ती को कहे कि ऐ जहर की पुढि़या अब और जहर उगलना बंद कर। परंतु बंसन्ती हाव-भाव को देख ऐसा लग रहा था कि बंसन्ती ने भी कसम खा रखी है कि वो चुप नही बैठेगी। दूसरी और चांद की सैर को लेकर वीरू के मन में इतने लड्डू फूट रहे थे कि उसने महौल को और खराब करने की बजाए अपनी जुबान पर लगाम लगाऐ रखने में ही भलाई समझी। वीरू जैसे ही सामान उठा कर चलने लगा तो बंसन्ती ने कहा कि सारी दुनियां धरती से ही चांद को देखती है तुम भी यही से देख लो, इतनी दूर जाकर क्या करोगे? अगर यहां से तुम्हें चांद ठीक से नही दिखे तो अपनी छत पर जाकर देख लो। बंसन्ती ने जब देखा कि उसके सवालों के सभी आक्रमण बेकार हो रहे है तो उसने आत्मसमर्पण करते हुए वीरू से कहा कि अगर चांद पर जा ही रहे हो तो वापिसी में बच्चो के वहां से कुछ खिलाने और मिठाईयां लेते आना। वीरू ने भी उसे अपनी और खींचते हुए कहा कि तुम अपने बारे में भी बता दो, तुम्हारे लिये क्या लेकर आऊ? बंसन्ती ने कहा जी मुझे तो कुछ नही चाहिये हां आजकल यहां आलू, प्याज बहुत मंहगे हो रहे है, घर के लिये थोड़ी सब्जी लेते आना। कुछ देर से अपने सवालों पर काबू रख कर बेैठी बंसन्ती ने वीरू से पूछा कि जाने से पहले इतना तो बताते जाओ कि यह चांद दिखने में कैसा होता है? अब तक वीरू बंसन्ती के सवालों से बहुत चिढ़ चुका था, उसने कहा कि बिल्कुल नर्क की तरह। क्यूं वहां से कुछ और लाना हो तो वो भी बता दो। बंसन्ती ने अपना हाथ खींचते हुए कहा कि फिर तो वहां से अपनी एक वीडियो बनवा लाना, बच्चे तुम्हें वहां देख कर बहुत खुष हो जायेगे। कुछ ही देर में वीरू ने देखा कि वो राकेट में बैठ कर चांद की सैर करने जा रहा है। रास्ते में राकेट के ड्राईवर से बातचीत करते हुए मालूम हुआ कि आज तो अमावस है, आज चांद पर जाने से क्या फायदा क्योंकि आज के दिन तो चांद छुªट्टी पर रहता है।

इतने में गली से निकलते हुए अखबार वाले ने अखबार का बंडल बरामदे में सो रहे वीरू के मुंह पर फेंका तो उसे ऐसा लगा कि जैसे किसी ने उसे चांद से धक्का देकर नीचे धरती पर फैंक दिया हो। वीरू की इन हरकतों को देखकर तो कोई भी व्यक्ति यही कहेगा कि जो मूर्ख अपनी मूर्खता को जानता है, वह तो धीरे-धीरे सीख सकता है, परंतु जो मूर्ख खुद को सबसे अधिक बुद्विमान समझता हो, उसका रोग कोई नही ठीक कर सकता। वीरू के इस ख्वाब को देख जौली अंकल उसे यही सलाह देना चाहते है कि ख्वाब देखने पर हर किसी को पूरा अधिकार है। लेकिन यदि आपके कर्म अच्छे है और आप में एकाग्रता की कला है तो हर क्षेत्र में आपकी सफलता निष्चित है फिर चाहे वो चांद की सैर ही क्यूं न हो?

(लेखक वरिष्ठ कहानीकार हैं)

Friday 21 September 2012

विमर्श


लोकसेवा आयोग का हिंदी बैर!


    रहीस सिंह

पिछले कुछ समय से भारतीय सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने वाले युवा संक्रमण और अवसाद का शिकार बन रहे हैं। उन्हें यह पता नहीं है कि आने वाले समय में संघ लोक सेवा आयोग क्या करने वाला है। आयोग के अध्यक्ष या सचिव की तरफ से आधिकारिक बयान तो नहीं आते हैं, लेकिन खबरें अक्सर धमाका करती हैं कि कुछ दिन में ही सब बदलने वाला है। तैयारी करने वाले विद्यार्थियों की सांसें अटक जाती हैं और वे समय की प्रतीक्षा में अवसाद की ओर बढ़ने लगते हैं। जब खबर आती है कि मुख्य परीक्षा में वैकल्पिक विषय खत्म कर दिए जाएंगे तो कम से कम हिंदी, उर्दू और संस्कृत विषय वालों की एक मौत हो जाती है, क्योंकि वे किसी तरह से अपने इन्हीं विषयों के बूते लक्ष्य तक पहुंचने का सपना देख पा रहे हैं। सवाल यह उठता है कि आखिर आयोग की कार्यशैली में इतनी अपारदर्शिता, अस्पष्टता और अनिश्चितता क्यों है? आखिर आयोग क्या साबित करना चाहता है? कभी-कभी तो लगने लगता है कि आयोग भी सरकार की राह चल रहा है। लाखों युवाओं का भविष्य दांव पर लगा है, लेकिन उसे कोई फर्क नहीं पड़ता, पड़े भी क्यों आखिर संवैधानिक शक्तियां जो उसके पास हैं। लेकिन ऐसा क्यों होता है? आयोग अपने क्रियान्वित और संभावित बदलावों के पक्ष में तमाम तकरीरें पेश करता है, लेकिन ये कुछ वैसी ही होती हैं, जैसी इस समय कांग्रेसनीत सरकार की हैं। बहुत मुमकिन है कि ये बदलाव सरकार की सोच का ही नतीजा हों, जिसके जरिए वह हिंदी भाषी क्षेत्र और हिंदी, उर्दू, संस्कृत जैसे विषयों के युवाओं को बाहर का रास्ता दिखाना चाहता हो। मनमोहन सिंह जब पहली बार प्रधानमंत्री बने थे तो उन्होंने कहा था कि भारत में सिविल सेवा परीक्षा को फ्रांस के पैटर्न पर संचालित किया जाएगा यानी 12वीं के बाद ही परीक्षा ली जाएगी और इसमें चयनित प्रतिभागियों को पांच वर्ष तक सरकारी पैसे से प्रशिक्षण दिया जाएगा। अंतिम रूप से चयनित प्रतिभागियों की नियुक्ति होगी और शेष को अन्य क्षेत्रों में भेजा दिया जाएगा। इसके पीछे उनका तर्क यह था कि सिविल सेवकों का राजनीतिकरण हो रहा है, जिससे वे अकुशल, अक्षम और भ्रष्ट बन रहे हैं। जब मनमोहन सिंह यह फार्मूला पेश कर रहे थे, उसी समय उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने अखंड प्रताप सिंह को राज्य का मुख्य सचिव बनाया था, जिन्हें आइएएस एसोसिएशन ने सबसे भ्रष्ट आइएएस बताया था। जब उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने हटाने का आदेश दिया तो भ्रष्ट नंबर दो यानी नीरजा यादव मुख्य सचिव बन गई। उन्हें भी उसी तरह से हटाया गया। आज आइएएस-आइपीएस लॉबी पूरी तरह राजनीतिक हो चुकी है। ऐसे में क्या गारंटी है कि चयन के बाद उनकी कार्यशैली में सुधार होगा ही? आयोग की वैकल्पिक विषय हटाने की दो दलीलें हैं। कोचिंग तंत्र को खत्म करना और परीक्षा में एकरूपता लाना। आयोग ने जब प्रारंभिक परीक्षा में विषय हटाकर एप्टीट्यूड टेस्ट लागू किया तो बैंक या एसएससी की क्लर्क परीक्षाओं की तैयारी कराने वाले कोचिंग संस्थान भी सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कराने लगे। सीएसएटी यानी सिविल सेवा एप्टीट्यूड टेस्ट के लागू होते ही दिल्ली, लखनऊ, इलाहाबाद, पटना, इंदौर और देहरादून जैसे शहरों में कोचिंग संस्थानों में कम से कम दो या तीन गुना वृद्धि हो गई थी। इस अव्यवस्था में युवा सबसे ज्यादा ठगा गया, क्योंकि आयोग ने मॉडल टेस्ट पेपर वेबसाइट पर नहीं डाला। कुछ समय के लिए तो लग रहा था कि आयोग इस विषय में खुद दिग्भ्रमित था कि आखिर प्रश्नों का स्वरूप कैसा होगा? इसका पूरा लाभ कोचिंग संस्थानों को मिला। इसके बाद प्रश्नपत्रों का जो स्वरूप सामने आया उससे हिंदी भाषी छात्रों को धक्का लगा और बाजी दक्षिण के लोगों तथा अंग्रेजी भाषियों के हाथ लगी। आयोग को कम से कम इतना तो बताना चाहिए कि वह इसके जरिए कौन सी एकरूपता लाया है? अब आयोग मुख्य परीक्षा में भी विषयों को खत्म कर देना चाहता है। तर्क वही कि परीक्षा में एकरूपता और कोचिंग तंत्र का समापन। कोचिंग तंत्र का समापन तो किसी स्थिति में नहीं होगा, क्योंकि देश में छात्रों और संरक्षकों में कोचिंग संस्थान ही सफलता के एकमात्र दिग्दर्शक हैं, यह मनोविज्ञान पूरी तरह से विकसित हो चुका है। आयोग के सदस्य इस जमीनी हकीकत से या तो वाकिफ नहीं है या फिर वे अनजान बने रहना चाहते हैं। दूसरा तर्क है सभी को समान अवसर मुहैया कराने का। या यों कहें कि साधारण विश्वविद्यालयों के स्नातक परास्नातक छात्र आइआइटी के छात्रों की बराबरी में जाएंगे। यह तर्कहीन बात है। क्या आयोग यह मानता है कि इन दोनों संस्थानों के छात्रों का आइक्यू बराबर है? अगर मानता है तो फिर उसकी योग्यता पर भी उंगली उठाने का साहस करना पड़ेगा। एक सामान्य स्नातक छात्र आइआइटी स्नातक से काफी पीछे होता है। खासतौर पर लॉजिकल विषयों अंग्रेजी, बायोडाइवर्सिटी, प्रौद्योगिकीय विकास, तकनीकी आदि विषयों में। ऐसे तो मानविकी ग्रुप के विषयों से स्नातक कहीं नहीं रहेंगे और दबदबा आइआइटी, आइआइएम और मेडिकल के छात्रों का होगा। पिछले कुछ समय में देखा गया है कि उत्तर भारत के ग्रामीण परिवेश के छात्र या कुछ पूर्वोत्तर राज्यों और जम्मू-कश्मीर के हिंदी साहित्य, उर्दू या संस्कृत जैसे विषय लेकर आइआइटी और आइआइएम के छात्रों से आगे रहे हैं। 2009 में जम्मू-कश्मीर से पहले आइएएस टॉपर फैजल शाह इसकी मिसाल हैं, जिन्होंने उर्दू विषय के कारण ही टॉप किया। देश में अब भी ऐसे बहुत से फैजल शाह प्रतीक्षा की पंक्ति में हैं, जिन्हें संघ लोक सेवा आयोग और सरकार खत्म कर देने पर तुली है। अंग्रेजी शासन काल में जब कोई अंग्रेज आइसीएस की परीक्षा पास कर भारत आता था तो पहले उसे हेलिबरी कॉलेज में भारतीय इतिहास और संस्कृति की शिक्षा दी जाती थी, क्योंकि अंग्रेजी हुकूमत मानती थी कि इतिहास और संस्कृति को जाने बिना बेहतर प्रशासन संभव नहीं है। अब यह मूल मंत्र नदारद हो रहा है। शायद यही कारण है कि क्षेत्रीयता, सामुदायिक संघर्ष और टकराव बढ़ते जा रहे हैं और प्रशासन समाधान ढूंढ़ने में अक्षम है। खैर, आयोग पूरी तरह से बाजारवादी मूल्यों को प्रश्रय देने पर आमादा है। वह यह आकलन करने में असमर्थ है कि बाजार अर्थव्यवस्था को चला सकता है, प्रशासन को नहीं। इस देश में अब भी परंपरागत मूल्य जिंदा हैं, जिनके संरक्षण और संवर्द्धन से ही देश का कल्याण सुनिश्चित हो सकता है। आयोग को इसे नष्ट करने का कोई हक नहीं है। बेशक, बदलाव अच्छी बात है, लेकिन बदलाव ऐसे हों जो एकरूपता के नाम पर भेदभाव करें और उन लोगों को भी अवसर प्रदान करें, जो हिंदी, संस्कृत, उर्दू या पाली जैसे विषयों के जरिये इस उच्च सेवा में अपना स्थान सुनिश्चित करना चाहते हैं।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
(साभार दैनिक जागरण)

दीन-दुखियों की सेवा पुनीत कर्तव्य-मनोज



अदनाना वेलफेयर सोसाइटी के तत्वाधान में रविवार 09 सितंबर को कस्बा स्थित अमर वीर इण्टर कालेज के प्रांगण में निःशुल्क चिकित्सा शिविर का आयोजन किया गया। जिसमें नेत्र रोग, हड्डी रोग, स्त्री एवं प्रसूत रोग, जनरल फिजिषियन, दंत एवं मुख रोग तथा बाल रोग के विषेषज्ञ चिकित्सकों द्वारा लगभग एक हजार मरीजों की जांच कर निःशुल्क दवा वितरित की गयी।
शिविर का उद्घाटन करते हुए सैयदराजा विधायक मनोज कुमार सिंह ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्र में आज भी बेहतर स्वास्थ सुविधाओं की कमी है, जिस वजह से गरीब, मजदूर व कमजोर तबके के लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में सोसाइटी द्वारा निःशुल्क चिकित्सा शिविर का आयोजन कराना सराहनीय पहल है। उन्होने कहा कि दीन-दुखियों की सेवा सबसे पुनीत कार्य है। इससे नवयुवकों को प्रेरणा लेनी चाहिए। उन्होने सोसाइटी द्वारा किए जा रहे विभिन्न मानवतावादी कार्यों की सराहना करते हुए खुद सदैव सहयोग का आष्वासन दिया।
सोसाइटी के प्रबन्धक एम0 अफसर खां सागर ने कहा कि शिविर का प्रमुख मकसद ग्रामीण इलाके के उन गरीब व असहाय लोगों को बेहतर स्वास्थ सुविधायें उपलब्ध कराना है जो इससे वंचित रह जाते हैं। जनसेवा के बल पर समाज में व्याप्त असंतुलन को समाप्त किया जा सकता है। सोसाइटी का प्रयास है कि ग्रामीण समुदाय में शिक्षा, स्वास्थ, वन संरक्षण, महिला कल्याण हेतु जन जागरण अभियान चलाकर लोगों को जगरूक किया जाए।
कार्यक्रम संयोजक डा0 विशाल सिंह ने शिविर में आये लोगों को स्वास्थ सम्बंधित जानकारी प्रदान की व आये हुए लोगों का आभार व्यक्त किया।
शिविर में डा0 रत्ना राय, डा0 धीरेन्द्र सिंह, डा0 अखिलेष सिंह, डा0 षैलेन्द्र सिंह, डा0 कुवंर सतीष, डा0 पंचम, डा0 ज्योति बसु, डा0 प्रमोद, डा0 पवन, डा0 कुमुदरंजन, डा0 विषाल सिंह, डा0 डी0 के0 षुक्ला, एवं डा0 आकाष चन्द पाण्डेय ने मरीजों का इलाज किया।
इस दौरान कालेज के प्राचार्य छेदी सिंह, रविन्द्र सिंह, संतोष सिंह, बृजेष सिंह, षाह आलम खां, गृहषंकर सिंह, इम्तियाज, विवेक यादव, बदरे आलम खां, अंगद यादव, सर्फुद्दीन, इरफान, हामिद, नदीम, सज्जाद, कुर्बान, मुरारी, नन्दू यादव, तबरेज खां साहब सहित सैकडों गणमान्य लोग लोग मौजूद थे।

Thursday 20 September 2012

एफ.डी.आई पर व्यापारियों का भारत व्यापार बंद सफल!


रिटेल व्यापार में प्रत्यक्ष विदेषी निवेश के खिलाफ आज देशभर में 5 करोड से अधिक व्यापारिक प्रतिष्ठान कन्फैडरेशन आफ आल इंडिया ट्रेडर्स के आव्हान पर भारत व्यापार बंद में शामिल होते हुए व्यापारियों ने अपने प्रतिष्ठान पूरी तरह बंद रखे। दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, उतरप्रदेश, आन्ध्र प्रदेश, तामिलनाडू, कर्नाटक, छतीसगढ, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल, प्रदेश, उत्राखण्ड, बिहार सहित अन्य राज्यों में भारत व्यापार बंद पूरे तौर पर सफल रहा और व्यापारिक बाजारों में पूरी तरह विरानी छायी रही तथा किसी प्रकार की कोई व्यवसायिक गतिविधि नहीं हुई। भारत व्यापार बंद का समर्थन भा.ज.पा, सी.पी.एम, सी.पी.आई, जे.डी.यू, बी.एस.पी, एंव एस.पी. सहित विभिन्न राजनैतिक दलों ने किया है।
देशभर के लगभग 25000 से अधिक व्यापारिक संगठनो ने भारत व्यापार बंद में आज भाग लिया।
कन्फैडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री बी.सी. भर्तिया एंव राष्ट्रीय महामंत्री श्री प्रवीन खण्डेलवाल ने भारत व्यापार बंद को पूर्ण रूप से सफल बताते हुए कहा कि रिटेल व्यापार में एफ.डी.आई. जेसे संवेदनशील मुद्दे पर देशभर के व्यापारियों ने अपने प्रतिष्ठान बंद रख कर सरकार को अपने रोश एंव आक्रोश से अवगत करा दिया है। उन्होनें कहा कि रिटेल व्यापार में एफ.डी.आई. ना केवल व्यापारियों बल्कि ट्रांसपोर्टर, हार्कस तथा रोज मजदूरी अर्जित करने वाले लगभग 22 करोड़ लोग जो अपनी रोजी-रोटी के लिए रिटेल व्यापार पर निर्भर है को भी बुरी तरह प्रभावित करेगा वहीं दूसरी ओर किसानों के हित भी बुरी तरह प्रभावित होगें।
श्री भर्तिया एंव श्री खण्डेलवाल ने सरकार के उस वक्तव्य की कड़ी आलोचना की है जिसमें व्यापारियों को बिचैलिया कहा गया है और जो सप्लाई चेन में कथित भारी मुनाफा कमाते है । पिछले कुद दिनों से मीडिया में भी सरकार के पैरोकार व्यापारियों के विशयों में अर्नगन टिप्पणिया करते हुए एक सोची समझी गयी रणनीति के तहत सरकार की विफलताआंे को व्यापारियों के सिर मढने की कोषिष कर रहे हैं । जबकि हकीकत यह है कि सरकार ने आज तक रिटेल सैक्टर को कतई भी अपनी प्राथमिकता में रखा ही नहीं है और रिटेल में ढाचागंत सुविधाए उपलब्ध करवाने में सरकार पुरी तरह नाकाम रही है । वहीं दूसरी ओर बडे कारपोरेट घरानो द्वारा की जा रही जमाखोरी पर भी सरकार कोई नियंत्रण नहीं लगा पायी है। अपनी विफलताओं के लिए व्यापारियों को दोशी ठहराना कतई उचित नहीं ठहराया जा सकता।
व्यापारी नेताओं ने कहा कि सरकार द्वारा अपने निर्णय के पक्ष में जो तर्क दिए जा रहे है वो बेहद खोखले है और उनको लेकर सरकार कोई तथ्यात्मक आकडे़ आज तक पेश नहीं कर पायी है। कन्फैडरेशन ने मांग की है कि इस मुद्दे पर ससंदीय स्थायी समिति द्वारा 8 जून 2009 को संसद में सौंपी गयी सर्वसम्मत सिफारिशों पर सरकार अविलम्ब ध्यान दें वही दूसरी ओर सरकार अपना निर्णय वापिस लेते हुए शीर्श अधिकारियों एंव व्यापारियों की एक संयुक्त समिति गठित करें जो भारतीय रिटेल व्यापार की जमीनी हकीकत पर नजर डालते हुए रिटेल व्यापार को और अधिक चुस्त दुरूस्त बनाने के लिए सरकार को अपनी सिफारिशें दें।
भारत व्यापार बंद के सिलसिलें में आज दिल्ली के जंतर-मंतर पर व्यापारियों ने एक विरोध धरना दिया जिसमें व्यापारी एफडी. आई. के खिलाफ नारे लगा रहे थे और ”खुदरा बाजार में विदेशी निवेश - गुलाम बनेगा अपना देश“, ”विदेशी कम्पनिया आएगी-मंहगाई दहेज में लाएगी“, ”हम सामान बेचते है-सम्मान नहीं“, ”रिटेल व्यापार में एफडीआई- वापिस लो, वापिस लो“ जैसे नारों की तख्तिया व्यापारियों ने अपने हाथो में पकड़ी हुई थी। धरने में एन.डी.ए. के संयोजक श्री शरद यादव, भा.ज.पानेता मुरली मनोहर जोशी, माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव श्री प्रकाश कारत, तथा कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया के महासचिव ए.बी.बर्धन भी शामिल हुए।