Wednesday, 7 December 2011

चौथा स्तंभ

मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है.विधायिका और कार्यपालिका के प्रतिनिधियों से लोगों का भरोसा लगभग उठ चुका है और न्यायपालिका के कार्य में सत्ताधारियों द्धारा अडचनें डाली जा रही हैं. ऐसे में मीडिया की जिम्मेदारी काफी बढ गयी है. मीडिया अपना यह दायित्व बखूबी निभा भी रहा है.मीडिया के दबाव का ही नतीजा है कि सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों को अपने मंत्रियों तक को जेल भेजने के लिए मजबूर होना पडा.कई ऐसे मामलों की फाइलें दोबारा खोली गईं,जिनमें पीडितों को न्याय मिलने की संभावना के बराबर रह गई थी.घोटाले तेजी से बढे हैं,लेकिन उतनी ही तेजी से मीडिया घोटालों का पर्दाफाश भी कर रहा है. दुर्भाग्य से कानून को अपनी जागीर समझने वालों को मीडिया की यह सक्रियता रास नहीं रही है और
शायद यही वजह है कि मीडियाकर्मियों पर तेजी से हमले बढे हैं। ये हमले दो तरह से हो रहे हैं। एक तरफ
सत्ता के इशारे पर प्रशासन के लोग मीडियाकर्मियों को प्रताडित करने की कोशिश कर रहे हैं,जिसका ताजा
उदाहरण हाल ही में उस समय देखने को मिला,जब पुलिस टीवी पत्रकार शलभमणि त्रिपाठी को जबरन
पकड कर थाने ले गई।दूसरी तरफ असामाजिक तत्व मीडिया को लगातार निशाना बना रहे हैं,जिसका
हालिया उदाहरण मुंबई में पत्रकार जे.डे. की हत्या है। इसका मुख्य कारण यह है कि सरकार मीडियाकर्मियों पर हमलो को गंभीरता से नहीं ले रही है।यह सही है कि हर मीडियाकर्मी को सरकार सुरक्षाकर्मी मुहैया नहीं करा सकती,लेकिन कडे कानून तो बना ही सकतीहै। रातदिन सामाजिक चेतना के लिए काम करने वाले मीडियाकर्मियों को विशेष संरक्षण का अधिकार क्यों नहीं है। जिस तरह अनुसूचित जातियों-जनजातियों और महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों को रोकनेके लिए विशेष कानून बनाए गए हैं,उसी तरह मीडिया पर हमले रोकने के लिए विशेष कानून क्यों नही बनने चाहिए। मीडिया पर होने वाले किसी भी हमले को गैरजमानती माना जाना चाहिए।हिन्दी जर्नलिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष महेश अग्रवाल का मानना है कि जब तक कडे कानून नहीं होंगे,तब तक मीडियाकर्मी इसी तरह गुमराह तत्वों का निशाना बनते रहेंगे।पत्रकारों को भी एकजुट होकर सरकार परइस तरह का कानून बनाने के लिए दबाव बनाना चाहिए। वरिष्ठ पत्रकार कुमार कौशलेन्द्र का भी मानना है कि मीडियाकर्मियों को विशेष कानूनी संरक्षण मिलना ही चाहिए। मीडिया समाज का सजग प्रहरी है और सरकार को इस क्षेत्र की सुरक्षा की अनदेखी नहीं करनी चाहिए। पत्रकारिता के क्षितिज पर तेजी से उभर रहे पत्रकार अफसर खां सागर की राय में सरकार को जल्द से जल्द संसद में पत्रकारों की सुरक्षा हेतु कानून बनाने के लिए विधेयक लाना चाहिए।विधेयक में यह प्रावधान होना चाहिए कि किसी पत्रकार को धमकी देने वाले या हमला करने वाले को कम से कम छह माह तक जमानत मिल सके।


ओमकार मणि त्रिपाठी 
वरिष्ठ पत्रकार

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