Monday, 26 November 2012

कानफ्रेंस

 
शहीद-ए-आम कानफ्रेंस 

 
 
रूद्रपुर (उत्तराखण्ड)। शुक्रवारकी रात सीरगोटिया में शहीद-ए-आजम कानफ्रेंस का आयोजन किया गया। जिसमें भारत के  विभिन्न प्रांतों से आये हुए आलिमों ने षिरकत की। कानफ्रेंस में बोलते हुए झारखण्ड के मुफ्ती बिलाल साहब ने कहा कि इमामे हसन व हुसैन ने कर्बला में हक व सच के लिए अपनी कुर्बानी दी है जिसपर हर मुसलमान को फक्र होना चाहिए। राजा के प्रजा पर जुल्म को रोकने के लिए, इंसान को इंसान की गुलामी से मुक्ति दिलाने के लिए, इंसान पर हो रहे जुल्मो सितम को खत्म करने के लिए ये महान कुर्बानी पेश की गई और आने वाली नस्लो को एक सबक़ दिया गया कि हक़ और इंसाफ का परचम बुलन्द करने के लिए इस्लाम की राह में कुर्बान हो जाओ। हज़रते इमामे हुसैन ने अपने लहु से ऐसे चिराग़ जलाये जिनसे पूरी मानवता कयामत तक रौशनी हासिल करती रहेगी। हम सबको इमामे हसन व हुसैन के रास्ते पर चलना चाहिए। कानफ्रेंस में मौलाना फैसल साहब, मौलाना आजम साहब,मुफती मोइनुदीन, मौलाना जाहिद रजा, मौलाना महबूब रजा, फैयाज, समीन, मन्ना खां, सावेज सहित सैकडो लोग मौजूद रहे। कानफ्रेंस की अध्यक्षता मौलाना फुरकान खां व संचालन मुष्ताक नोमानी ने किया।

शोएब खान

Friday, 2 November 2012

सम्मान

'अवध सम्मान' से नवाजे गए कृष्ण कुमार यादव और आकांक्षा यादव


लखनऊ। जीवन में कुछ करने की चाह हो तो रास्ते खुद--खुद बन जाते हैं। हिन्दी-ब्लागिंग के क्षेत्र में ऐसा ही रास्ता अखि़्तयार किया दम्पति कृष्ण कुमार यादव आकांक्षा यादव ने। उनके इस जूनून के कारण ही आज हिंदी ब्लागिंग को आधिकारिक तौर पर भी विधा के रूप में मान्यता मिलने लगी है. इसी क्रम में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव ने 1 नवम्बर, 2012 को इलाहाबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएं कृष्ण कुमार यादव और उनकी पत्नी आकांक्षा यादव को 'न्यू मीडिया एवं ब्लागिंग' में उत्कृष्टता के लिए एक भव्य कार्यक्रम में 'अवध सम्मान' से सम्मानित किया गया. जी न्यूज़ द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम का आयोजन ताज होटल, लखनऊ में किया गया था, जिसमें विभिन्न विधाओं में उत्कृष्ट कार्य करने वालों को सम्मानित किया गया, पर यह पहली बार हुआ जब किसी दम्पति को युगल रूप में यह प्रतिष्ठित सम्मान दिया गया. ब्लागर दम्पति को सम्मानित करते हुए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने जहाँ न्यू मीडिया के रूप में ब्लागिंग की सराहना की, वहीँ कृष्ण कुमार यादव ने अपने संबोधन में उनसे उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा दिए जा रहे सम्मानों में 'ब्लागिंग' को भी शामिल करने का अनुरोध किया. आकांक्षा यादव ने न्यू मीडिया और ब्लागिंग के माध्यम से भ्रूण-हत्या, नारी-उत्पीडन जैसे मुद्दों के प्रति सचेत करने की बात कही. अन्य सम्मानित लोगों में वरिष्ठ साहित्यकार विश्वनाथ त्रिपाठी, चर्चित लोकगायिका मालिनी अवस्थी, ज्योतिषाचार्य पं. के. . दुबे पद्मेश, वरिष्ठ आई.एस. अधिकारी जय शंकर श्रीवास्तव इत्यादि प्रमुख रहे.

कृष्ण कुमार यादव और आकांक्षा यादव को सम्मानित करते उ.प्र. के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव

जीवन में एक-दूसरे का साथ निभाने की कसमें खा चुके कृष्ण कुमार यादव और आकांक्षा यादव, साहित्य और ब्लागिंग में भी हमजोली बनकर उभरे हैं. कृष्ण कुमार यादव ब्लागिंग और हिन्दी-साहित्य में एक चर्चित नाम हैं, जिनकी 6 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं उनके जीवन पर एक पुस्तकबढ़ते चरण शिखर की ओरभी प्रकाशित हो चुकी है। आकांक्षा यादव भी नारी-सशक्तीकरण को लेकर प्रखरता से लिखती हैं और उनकी दो पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं कृष्ण कुमार-आकांक्षा यादव ने वर्ष 2008 में ब्लाग जगत में कदम रखा और 5 साल के भीतर ही सपरिवार विभिन्न विषयों पर आधारित दसियों ब्लाग का संचालन-सम्पादन करके कई लोगों को ब्लागिंग की तरफ प्रवृत्त किया और अपनी साहित्यिक रचनाधर्मिता के साथ-साथ ब्लागिंग को भी नये आयाम दिये। कृष्ण कुमार यादव का ब्लॉग 'शब्द-सृजन की ओर' (http://www.kkyadav.blogspot.in/) जहाँ उनकी साहित्यिक रचनात्मकता और अन्य तमाम गतिविधियों से रूबरू करता है, वहीँ 'डाकिया डाक लाया' (http://dakbabu.blogspot.in/) के माध्यम से वे डाक-सेवाओं के अनूठे पहलुओं और अन्य तमाम जानकारियों को सहेजते हैं. आकांक्षा यादव अपने व्यक्तिगत ब्लॉग 'शब्द-शिखर' (http://shabdshikhar.blogspot.in/) पर साहित्यिक रचनाओं के साथ-साथ सामाजिक सरोकारों और विशेषत: नारी-सशक्तिकरण को लेकर काफी मुखर हैं. इस दम्पति के ब्लागों को सिर्फ देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी भरपूर सराहना मिली। कृष्ण कुमार यादव के ब्लागडाकिया डाक लायाको 98 देशों, ’शब्द सृजन की ओरको 75 देशों, आकांक्षा यादव के ब्लागशब्द शिखरको 68 देशों में देखा-पढ़ा जा चुका है. सबसे रोचक तथ्य यह है कि यादव दम्पति ने अभी से अपनी सुपुत्री अक्षिता (पाखी) में भी ब्लागिंग को लेकर जूनून पैदा कर दिया है. पिछले वर्ष ब्लागिंग हेतु भारत सरकार द्वारा ’’राष्ट्रीय बाल पुरस्कार’’ से सम्मानित अक्षिता (पाखी) का ब्लागपाखी की दुनिया’ (http://pakhi-akshita.blogspot.in/) बच्चों के साथ-साथ बड़ों में भी काफी लोकप्रिय है और इसे 98 देशों में देखा-पढ़ा जा चुका है। इसके अलावा इस ब्लागर दम्पति द्वारा 'उत्सव के रंग', 'बाल-दुनिया', 'सप्तरंगी प्रेम' इत्यादि ब्लॉगों का भी सञ्चालन किया जाता है.

इस अवसर पर .प्र. विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पाण्डेय, रीता बहुगुणा जोशी, प्रमोद तिवारी, केबिनेट मंत्री दुर्गा प्रसाद यादव, अनुप्रिया पटेल, मेयर दिनेश शर्मा सहित मंत्रिपरिषद के कई सदस्य, विधायक, कार्पोरेट और मीडिया से जुडी हस्तियाँ, प्रशासनिक अधिकारी, साहित्यकार, पत्रकार, कलाकर्मी खिलाडी इत्यादि उपस्थित रहे. आभार ज्ञापन जी न्यूज उत्तर प्रदेश-उत्तराखंड के संपादक वाशिन्द्र मिश्र ने किया.

                                                                                                                            अफसर सागर

Saturday, 27 October 2012

त्यौहार

धूम-धाम से मना बकरीद 



चन्दौली के धानापुर में बकरीद की बधाई देते सैयदराजा विधायक मनोज सिंह डब्लू।
चन्दौली। त्याग व कुर्बानी का पर्व इदुल अजहा यानि बकरीद जनपद में बड़े धूम-धाम से मनाया गया। मुस्लिम बंधुओं ने सुबह नमाज अदा करने के बाद घर आकर अल्लाह की राह में कुर्बानी पेश किया। पूरे दिन एक-दूसरे से मिलने का सिलसिला जारी रहा। लोगों को बधाई देने में जनप्रतिनिधि भी पीछे नहीं रहे। धानापुर में सैयदराजा विधायक मनोज कुमार सिंह डब्लू ने लोगों को बकरीद की बधाई दी व गले मिले। इस दौरान उन्होने कहा कि हमारे त्यौहार आपसी भाईचारा का पैगाम लेकर आते हैं। बकरीद हमें सच्चे बलिदान का संदेष देता है। हमें चाहिए कि त्यौहारों में गरीब व कमजोर लोगों के घर भी खुषी लाने के लिए प्रयास करें।
इस दौरान अंगद यादव, कैयूम खां, नंद कुमार राय, मंटू सिंह, सुनील यादव, इसरार ,खां, सर्फुद्दीन, आरिफ, शाहनवाज, नेसार खां, रिंकज सिंह, अमजद खां, शाहिद अबरार, सज्जाद  अली, सादाब सहित अनेकों लोग मौजूद रहें।

Monday, 22 October 2012

मिशाल

मासूम के इलाज को विधायक ने बढ़ाया हाथ

 लाचार सिमरन को इलाज के वास्ते लिया गोद, करायेंगे प्लास्टिक सर्जरी

चन्दौली ब्यूरो। ऐसे दौर में जब राजनेताओं के चरित्र व कार्यप्रणाली पर आम आदमी प्रश्न चिन्ह लगाने से नहीं चूक रहा हो अगर कोई नेता राजनीति से इतर कदम उठाये तो सराहनीय पहल माना जाये तो गलत न होगा। सकलडीहा निवासी मु0 इसरार उर्फ गुड्डू के घर षनिवार का दिन बकरीद व दीपावली की खुषियां साथ लेकर आया। क्योंकि विगत दस साल पूर्व आग की चपेट में आ जाने की वजह से उनकी 11 साल की बच्ची सिमरन काफी जल चुकी है जिसके इलाज का बीडा सैयदराजा विधायक मनोज कुमार सिंह डब्लू ने उठा लिया है।

सिमरन को गोद में लिए सैयदराजा विधायक मनोज कुमार सिंह डब्लू।

नवरात्र के पवित्र माह में जहां कन्यओं की पूजा की जाती है, नौ दिनों तक व्रत रहने के बाद बालिकाओं को भोजन कराकर लोग खुद के व्रत का तारण करते हैं। कुछ इसी भावना से ओतप्रोत होकर विधायक मनोज सिंह ने ऐसी गरीब बच्ची को गोद लेकर नया जीवन देने का संकल्प लिया है जो बचपन में ही आग की लपटों में जलकर चलने के काबिल नहीं रही। बात 19 सितंबर 2002 की है रात में सोते वक्त मु0 इसरार के घर लैम्प के गिरने से आग लग गयी। आग में गिरहस्ती के साथ इसरार की दो बच्चीयां बुरी तरह जल गयीं। एक बच्ची ने तो सप्ताह भर के अन्दर ही दम तो दिया मगर दूसरी बच्ची जो सिर्फ आठ माह की थी आग से बुरी तरह जल गयी। आग ने उसके मुस्तकबिल को ही चैपट कर दिया। षरीर का बायां हिस्सा जल कर सिकुड गया। उसे नित्य क्रिया में भी परिवार का सहारा चाहिए। इसरार ने इलाज के लिए बहुत हाथ पैर मारा मगर महंगाई के दौर में सिलाई करके परिवार चलाना ही मुष्किल है सो थक कर हार मान गया।
इसरार बताते हैं कि बात ’’यह इत्तफाक ही है कि एक रोज विधायक जी इधर से गुजर रहें थे मैं कपडा सिल रहा था। मैने उन्हे सलाम किया और वे रूक गयें, बच्ची को देखकर उसे प्यार से गले लगा लिया और मुझसे पूछा कि कैसे ये हाल हो गया। मैने वकया बताया और रो पडा। तब से विधायक जी ने हमें आष्वासन दिया कि मै इसे गोद लेकर पूरा इलाज कराउंगा। आज इन्होने मेरी बेटी को गोद लिया है इलाज कराने के वास्ते।’’ इस बाबत विधायक मनोज सिंह का कहना हैं कि ’’नवरात्र के पवित्र माह में किसी पीडि़त कन्या के इलाज कराने का जो सौभग्य ईष्वर ने दिया है उसे मैं अपने पुर्वजन्म के अच्छे कर्म को ही आधार मानता हूं। सिमरन को नई जिन्दगी देने का पूरा प्रयास करूंगा। इसके लिए जो भी खर्च करना होगा मैं खुद वहन करूंगा। बीएचयू में बात किया हूं जरूरत पडी तो प्लास्टिक सर्जरी के लिए हैदराबाद ले जाउंगा।
विधायक के इस पहल से लोगों में खुषी व्याप्त है। इसकी सराहना चहुंओर है। लोगों का मानना है कि आमजन के दुःख-सुख का भागीदार बनने वाले जनप्रतिनिधिनि की समाज को जरूरत है।
कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों।
                                     

Thursday, 4 October 2012

Interview

Having the last laugh

  • By Nilima Pathak
  • Image Credit: Arun Sharma
  • Jolly (Jatinder Singh)
New Delhi: Jatinder Pal Singh, aka Jolly Uncle, is as popular in Patna as he is in Pennsylvania.
New Delhi’s most famous jokes writer, Jolly has been regaling people with his short stories and snappy funny lines in Hindi for almost two decades.
Writing for portals and newspapers, Jolly has a fan following from as far as the US, UK, Switzerland and Canada. And, almost all cars parked in west Delhi’s Tilak Nagar colony, where he resides, have smiley stickers pasted on them!
The 59-year-old humorist says he was not always a jolly fellow. But diagnosed with Deep Vain Thrombosis that led to several heart attacks, which left him bedridden for several months, changed his entire life in 1994.
“I was devastated when doctors told me that there was no cure. Initially, it was very tough reconciling to the idea that I required total bed rest, but as time passed, I began feeling less depressed and made best of the time in hand.”
Even while his social circle reduced and relatives maintained sombre faces and sympathised with him, Jolly did a total turnaround. He began cracking jokes first at his own predicament and then in general. Soon, people began enjoying his company and Jolly started living life to the hilt. He is now a role model to many.
“Undaunted by restriction in my movement and having all the time in the world for myself, I began writing jokes and short stories and sent them to various newspapers,” he recalls.
After a newspaper by mistake published his joke under the name ‘Jolly Uncle’, he became famous by this name. But maintained, “A lot of elderly people feel embarrassed referring to me as Uncle!”
It is not all fun and games with him. Jolly runs a government approved cargo clearing agency under the name Aman Cargo, having establishments in Delhi and Mumbai and has been in the trade for the last 30 years.
He tasted success in writing a couple of years after newspapers began publishing his jokes. Initially, he sent the jokes to local newspapers of west Delhi, but soon flooded several portals with his humorous notes.
Appreciation led to Jolly, an admirer of Charlie Chaplin movies, receiving fan mail and writing became a passion with him. He has written jokes for more than 100 newspapers across the country. For the last several years, he has been writing regularly for Punjab Kesari, the largest selling Hindi daily in India.
A sample of his joke: Once Bollywood filmstar Mallika Sherawat was stopped by a beggar, who asked for money saying: “Behenji kuch dete jaiye” (Sister, please give me something). A beaming Sherawat handed him Rs500 note. Aghast, a friend who was with Sherawat asked her, “Why did you give him so much?” Sherawat responded, “You will not understand. Actually, no one has ever called me behenji (sister) before!”
Jolly’s most popular characters are Veeru and Basanti, from the Bollywood blockbuster Sholay. He has written a script for a movie starring veteran TV comedy couple Savita and Jaspal Bhatti. Titled Chadha Chadhi Te Nikke, the film has been in the making for some time.
“It is a slapstick take on the state of affairs in the medical field. The protagonists are two government hospital doctors who misuse the facilities of the hospital they work in,” he informs.
Besides that, Jolly has authored six books that comprise motivational stories. “My aim is to do good in life and I would feel blessed if I am able to motivate people into doing good for the society in any way.”
He has been awarded by a number of institutions for his motivational writings.
As for the jokes he writes, Jolly says, “There is humour all around and I draw inspiration from everyday life’s happenings. People write to me from all over the world to inform that it is a ritual in the family to go through my Facebook page. And I ensure that my fans get their regular dose of humour and post jokes on the page every morning.”
The jokes reflect social realities and deal with corruption, inflation and politics.
Writing has made Jolly’s life easier. As he says, “It’s not a joke that I am living and having fun despite suffering from a deadly disease.”

Gulf News

Wednesday, 3 October 2012

आज भी गांधी व शास्त्री जी के विचार प्रासंगिक- अफसर


धानापुर। अदनान वेलफेयर सोसाइटी के तत्वाधान में कस्बा स्थित कैम्प कार्यालय पर राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी व पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी की जयन्ती समारोह पूर्वक मनायी गयी। लोगों ने गांधी जी व शास्त्री जी के तैलचित्र पर माल्यापर्ण कर भावभीनी श्रद्धांजली अर्पित किया।
सोसाइटी के प्रबंधक एम0 अफसर खां सागर ने कहा कि आज भी गांधी व शास्त्री जी के विचार प्रासंगिक हैं। एक तरफ जहां पुरा विष्व राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के सत्य व अहिंसा के विचार को आत्मशात कर रहा है वहीं दूसरी तरफ लाल बहादुर शास्त्री जी राजनीतिक सूचिता व पारदर्षिता के मिशाल हैं। वर्तमान परिवेश में राजनीति के बदलते मूल्यों व पूरे विष्व में बढती हिंसा मानव समाज के लिए घातक है। इनके विचार ही समाज को नया रास्ता दिखा सकते हैं। इन महापुरूषों के बताये रास्ते पर ही चलकर विश्व समाज का कल्याण सम्भव है।
जयंती समारोह में नौशाद खां, विवेक यादव, इरफान खां, हामिद अबरार, रविकान्त, मु0 रईस, आरिफ खां, जितेन्द, शमशाद, तबरेज खां, इम्तियाज अंसारी, उदय प्रताप, आसिफ इसरार, विशाल सिंह, सद्दाम खां, अशोक सिंह, परवेज खां समेत अनेक गणमानय लोग मौजूद रहें। समारोह की अध्यक्षता हाफिज अबरार अहमद व संचाल सर्फूद्दीन ने किया।

Thursday, 27 September 2012

एफ.डी.आई के खिलाफ कन्फैडरेशन ने व्यापाक राष्ट्रीय आन्दोलन की घोषणा


रिटेल व्यापार में एफ.डी.आई. को अनुमति देने के विरोध में देश के लगभग 20 राज्यों के व्यापारी नेताओं ने आज नई दिल्ली में जन्तर-मन्तर पर एक धरने में विरोध प्रदर्शन करते हुए अपने मुँह के ऊपर काली पट्टीयां बांध रखी थी और अपने हाथों को जंजीरों से बांधकर ताला लगया हुआ था। जिससे यह संदेश दिया गया कि बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के आने के बाद भारत का रिटेल व्यापार उनका बंधक बन जाएगा और वो अपना एकाधिकार जमाते हुए रिटेल व्यापार पर कब्जा़ करेंगे। धरने का आयोजन कन्फैडरेशन आफ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने किया। धरने पर ही एक अलग परिदृश्य में झाँकी के रूप में सरकार को वैंटीलेटर पर लैंटे हुए दिखाया गया जो रिटेल व्यापार का खून चूस रही है। जिससे व्यापारियों का व्यापाक विरोध प्रर्शित हो रहा था। नेशनल हाकर्स फैडरेशन के बड़ी संख्या में हाकर्स ने भी व्यापारियों के धरने में शामिल होते हुए अपने सिरे पर सब्जी एवं फल आदि कि टोकरियाँ रखी हुई थी। लेकिन वहाँ पर कोई ग्राहक नहीं था जो यह दर्शाता है कि विदेशी कम्पनियों के आने के बाद देश के लाखों हाकर्स भी बेरोज़गार हो जाएंगे धरने का नेतृत्व कैट के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री बी.सी.भरतिया ने किया।
धरने में जंतर-मंतर पर व्यापारियों ने एक विरोध धरना दिया जिसमें व्यापारी एफ.डी.आई. के खिलाफ नारे लगा रहे थे और ”खुदरा बाजार में विदेशी निवेश - गुलाम बनेगा अपना देश“, ”विदेशी कम्पनियाॅं आएगी-मंहगाई दहेज में लाएगी“, ”हम सामान बेचते है-सम्मान नहीं“, ”रिटेल व्यापार में एफडीआई- वापिस लो, वापिस लो“ जैसे नारों की तख्तियाॅं व्यापारियों ने अपने हाथो में पकड़ी हुई थी। कन्फैडरेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष बी.सी.भरतिया तथा राष्ट्रीय महामंत्री श्री प्रवीन खण्डेलवाल ने बताया कि कल नई दिल्ली में हुई देशभर केव्यापारी नेताओं की बैठक में रिटेल व्यापार में एफ.डी.आई के खिलाफ राष्ट्रव्यापी आन्दोलन को और तेजी से चलाया जाएगा। बैठक में यह भी निर्णय हुआ कि इस आन्दोलन में किसानों, हाकर्स, टेªड यूनियन, ट्राँसपोर्टर, स्वरोजगार करने वाले लोग तथा रिटेल व्यापार से जूडे़ अन्य वर्गो के संगठनों साथ लेकर आन्दोलन को व्यापक रूप दिया जाएगा। उन्होंने आगामी 3 महीने की रणनीति का खुलासा करते हुए बताया कि 1 अक्टूबर, 2012 तक देशभर में व्यापारी “मिलये अपने सांसद और विध्ाायक से।” अभियान चलाया जाएगा जिसमें उनकों ज्ञापन सोंपे जाएंगे उधर दूसरी ओर राष्ट्रपिता महात्मागाँधी जी के जन्मदिवस 2 अक्टूबर को
देशभर में व्यापारी “सदबुद्धि दिवस” के रूप में मनाएंगें और अपने-अपने शहरों में गाँधीजी की प्रतिमा पर एकत्रित होकर सरकार को सदबुद्धि देने की प्रार्थना करेंगे। दशहरे से एक दिन पूर्व 23 अक्टूबर को देशभर में एफ.डी.आई. रूपी रावण के पुतले का दहन किया जाएगा। श्री भरतिया एवं श्री खण्डेलवाल ने बताया कि नवम्बर महीने को “राष्ट्रीय जागरण मास” के रूप मनाते हुए देशभर में सेमीनार, वर्कशाप, मार्कीटों
में व्यापारीयों की बैठक, विरोध मार्च, धरने एवं प्रदर्शन आयोजित किए जाएंगें। जिसके द्वारा लोगो को बताया जाएगा कि किस प्रकार बहुराष्ट्रीयकम्पनियाँ देश की अर्थव्यवस्था और रिटेल व्यापार के लिए घातक होंगी।
उन्होंने यह भी बताया की इस मुद्दे पर नई दिल्ली में एक महारैली करने का भी निर्णय लिया गया है जिसमें रिटेल व्यापार से जूडे़ सभी वर्गशामिल होंगे। रैली की तारीख तय करने एवं आन्दोलन में सहभागिता को लेकर व्यापारियों, किसानों, हाकर्स, ट्राँसपोर्टर, तथा अन्य वर्गाे कीएक बैठक आगामी 9 अक्टूबर को नई दिल्ली में होगी। उन्होंने यह भी बताया कि आगामी 3 महीने में सभी राज्यों में राज्य स्तरीय सम्मेलन होंगे व्यापारी प्रतिनिधि मंडल देश के सभी राज्यों के मुख्यमंत्री तथा काॅग्रेस सहित सभी राजनैतिक दलों के प्रमुख नेताओं से मिलकर ज्ञापन देते हुए इस मुद्दे पर समर्थन का आग्रह करेंगे। उन्होंने यह भी बताया कि संसद के शीतशत्र में जिस दिन भी किसी भी दल द्वारा इस मुद्दे पर कोई प्रस्ताव लाया जाएगा उस दिन देशभर में व्यापारी
विरोध मार्च करेंगे। व्यापारी नेताओं ने कुछ काॅग्रेसी नेताओं द्वारा व्यापारियों को एक राजनैतिक दल से संबंधित होने के वक्तवय पर गहरीआपति जताई है। उन्होंने स्पष्ट करते हुए कहा कि व्यापारियों के मुद्दे विशुद्ध रूप से गैर राजनैतिक है और व्यापारियों पर किसी प्रकार काआरोप लगाने का अधिकार किसी को नहीं है। कन्फैडरेशन की नेशनल गर्वनिंग काँउसिल की अगली बैठक 16-17 दिसम्बर को जयपूर का जाएगा लेकर अगले वर्ष की रणनीति तय कि जाएगी।

Tuesday, 25 September 2012

कहानी

   चांद  की  सैर

एक शाम वीरू काम से लौट कर अपने घर में टीवी पर समाचार देख रहा था। हर चैनल पर मारपीट, हत्या, लूटपाट और सरकारी घौटालों के अलावा कोई ढंग का समाचार उसे देखने को नही मिल रहा था। इन खबरों से ऊब कर वीरू ने जैसे ही टीवी बंद करने के रिर्मोट उठाया तो एक चैनल पर बेै्रकिंग न्यूज आ रही थी कि वैज्ञनिकों ने दावा किया है कि उन्हें चांद पर पानी मिल गया है। इस खबर को सुनते ही वीरू ने पास बैठी अपनी पत्नी बंसन्ती से कहा कि अपने षहर में तो आऐ दिन पानी की किल्लत बहुत सताती रहती है, मैं सोच रहा हॅू कि क्यूं न ऐसे मैं चांद पर ही जाकर रहना षुरू कर दूं। बंसन्ती ने बिना एक क्षण भी व्यर्थ गवाएं हुए वीरू पर धावा बोलते हुए कहा कि कोई और चांद पर जायें या न जायें आप तो सबसे पहले वहां जाओगे। वीरू ने पत्नी से कहा कि तुम्हारी परेषानी क्या है, तुम्हारे से कोई घर की बात करो या बाहर की तुम मुझे हर बात में क्यूं घसीट लेती हो। वीरू की पत्नी ने कहा कि मैं सब कुछ जानती हॅू कि तुम चांद पर क्यूं जाना चाहते हो? कुछ दिन पहले खबर आई थी चांद पर बर्फ मिल गई है और आज पानी मिलने का नया वृतान्त टीवी वालों ने सुना दिया है। मैं तुम्हारे दारू पीने के चस्के को अच्छे से जानती हॅू। हर दिन षाम होते ही तुम्हें दारू पीकर गुलछर्रे उड़ाने के लिये सिर्फ इन्हीं दो चीजो की जरूरत होती है। अब तो सिर्फ दारू की बोतल अपने साथ ले जा कर तुम चांद पर चैन से आनंद उठाना चाहते हो।

वीरू ने बात को थोड़ा संभालने के प्रयास में बंसन्ती से कहा कि मेरा तुम्हारा तो जन्म-जन्म से चोली-दामन का साथ है। मेरे लिये तो तुम ही चांद से बढ़ कर हो। बंसन्ती ने भी घाट-घाट का पानी पीया हुआ है इसलिये वो इतनी जल्दी वीरू की इन चिकनी-चुपड़ी बातों में आने वाली नही थी। वीरू द्वारा बंसन्ती को समझाने की जब सभी कोषिषें बेकार होने लगी तो उसने अपना आपा खोते हुए कहा कि चांद की सैर करना कोई गुडियों का खेल नही। वैसे भी तुम क्या सोच रही हो कि सरकार ने चांद पर जाने के लिये मेरे राषन कार्ड पर मोहर लगा दी है और मैं सड़क से आटो लेकर अभी चांद पर चला जाऊगा। अब इसके बाद तुमने जरा सी भी ची-चुपड़ की तो तुम्हारी हड्डियां तोड़ दूंगा। वैसे एक बात बताओ कि आखिर तुम क्या चाहती हो कि सारी उम्र कोल्हू का बैल बन कर बस सिर्फ तुम्हारी सेवा में जुटा रहूं। तुम ने तो कसम खाई हुई है कि हम कभी भी कहीं न जायें बस कुएं के मैंढ़क की तरह सारा जीवन इसी धरती पर ही गुजार दें।

बसन्ती के साथ नोंक-झोंक में चांद की सैर के सपने लिए न जाने कब वीरू नींद के आगोष में खो गया। कुछ ही देर में वीरू ने देखा कि उसने चांद पर जाने की सारी तैयारियां पूरी कर ली है। वीरू जैसे ही अपना सामान लेकर चांद की सैर के लिये निकलने लगा तो बंसन्ती ने पूछा कि अभी थोड़ी देर पहले ही चांद के मसले को लेकर हमारा इतना झगड़ा हुआ है और अब तुम यह सामान लेकर कहां जाने के चक्कर में हो? वीरू ने उससे कहा कि तुम तो हर समय खामख्वाह परेषान होती रहती हो, मैं तो सिर्फ कुछ दिनों के लिये चांद की सैर पर जा रहा हॅू। वो तो ठीक है लेकिन पहले यह बताओ कि जिस आदमी ने दिल्ली जैसे षहर में रहते हुए आज तक लालकिला और कुतबमीनार नही देखे उसे चांद पर जाने की क्या जरूरत आन पड़ी है? इससे पहले की वीरू बंसन्ती के सवालों को समझ कर कोई जवाब देता बंसन्ती ने एक और सवाल का तीर छोड़ते हुए कहा कि यह बताओ कि किस के साथ जा रहे हो। क्योंकि मैं तुम्हारे बारे में इतना तो जानती हॅू कि तुममें इतनी हिम्मत भी नही है कि अकेले रेलवे स्टेषन तक जा सको, ऐसे में चांद पर अकेले कैसे जाओगे? मुझे यह भी ठीक से बताओ कि वापिस कब आओगे?

बंसन्ती के इस तरह खोद-खोद कर सवाल पूछने पर वीरू का मन तो उसे खरी-खरी सुनाने को कर रहा था। इसी के साथ वीरू के दिल से यही आवाज उठ रही थी कि बंसन्ती को कहे कि ऐ जहर की पुढि़या अब और जहर उगलना बंद कर। परंतु बंसन्ती हाव-भाव को देख ऐसा लग रहा था कि बंसन्ती ने भी कसम खा रखी है कि वो चुप नही बैठेगी। दूसरी और चांद की सैर को लेकर वीरू के मन में इतने लड्डू फूट रहे थे कि उसने महौल को और खराब करने की बजाए अपनी जुबान पर लगाम लगाऐ रखने में ही भलाई समझी। वीरू जैसे ही सामान उठा कर चलने लगा तो बंसन्ती ने कहा कि सारी दुनियां धरती से ही चांद को देखती है तुम भी यही से देख लो, इतनी दूर जाकर क्या करोगे? अगर यहां से तुम्हें चांद ठीक से नही दिखे तो अपनी छत पर जाकर देख लो। बंसन्ती ने जब देखा कि उसके सवालों के सभी आक्रमण बेकार हो रहे है तो उसने आत्मसमर्पण करते हुए वीरू से कहा कि अगर चांद पर जा ही रहे हो तो वापिसी में बच्चो के वहां से कुछ खिलाने और मिठाईयां लेते आना। वीरू ने भी उसे अपनी और खींचते हुए कहा कि तुम अपने बारे में भी बता दो, तुम्हारे लिये क्या लेकर आऊ? बंसन्ती ने कहा जी मुझे तो कुछ नही चाहिये हां आजकल यहां आलू, प्याज बहुत मंहगे हो रहे है, घर के लिये थोड़ी सब्जी लेते आना। कुछ देर से अपने सवालों पर काबू रख कर बेैठी बंसन्ती ने वीरू से पूछा कि जाने से पहले इतना तो बताते जाओ कि यह चांद दिखने में कैसा होता है? अब तक वीरू बंसन्ती के सवालों से बहुत चिढ़ चुका था, उसने कहा कि बिल्कुल नर्क की तरह। क्यूं वहां से कुछ और लाना हो तो वो भी बता दो। बंसन्ती ने अपना हाथ खींचते हुए कहा कि फिर तो वहां से अपनी एक वीडियो बनवा लाना, बच्चे तुम्हें वहां देख कर बहुत खुष हो जायेगे। कुछ ही देर में वीरू ने देखा कि वो राकेट में बैठ कर चांद की सैर करने जा रहा है। रास्ते में राकेट के ड्राईवर से बातचीत करते हुए मालूम हुआ कि आज तो अमावस है, आज चांद पर जाने से क्या फायदा क्योंकि आज के दिन तो चांद छुªट्टी पर रहता है।

इतने में गली से निकलते हुए अखबार वाले ने अखबार का बंडल बरामदे में सो रहे वीरू के मुंह पर फेंका तो उसे ऐसा लगा कि जैसे किसी ने उसे चांद से धक्का देकर नीचे धरती पर फैंक दिया हो। वीरू की इन हरकतों को देखकर तो कोई भी व्यक्ति यही कहेगा कि जो मूर्ख अपनी मूर्खता को जानता है, वह तो धीरे-धीरे सीख सकता है, परंतु जो मूर्ख खुद को सबसे अधिक बुद्विमान समझता हो, उसका रोग कोई नही ठीक कर सकता। वीरू के इस ख्वाब को देख जौली अंकल उसे यही सलाह देना चाहते है कि ख्वाब देखने पर हर किसी को पूरा अधिकार है। लेकिन यदि आपके कर्म अच्छे है और आप में एकाग्रता की कला है तो हर क्षेत्र में आपकी सफलता निष्चित है फिर चाहे वो चांद की सैर ही क्यूं न हो?

(लेखक वरिष्ठ कहानीकार हैं)

Friday, 21 September 2012

विमर्श


लोकसेवा आयोग का हिंदी बैर!


    रहीस सिंह

पिछले कुछ समय से भारतीय सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने वाले युवा संक्रमण और अवसाद का शिकार बन रहे हैं। उन्हें यह पता नहीं है कि आने वाले समय में संघ लोक सेवा आयोग क्या करने वाला है। आयोग के अध्यक्ष या सचिव की तरफ से आधिकारिक बयान तो नहीं आते हैं, लेकिन खबरें अक्सर धमाका करती हैं कि कुछ दिन में ही सब बदलने वाला है। तैयारी करने वाले विद्यार्थियों की सांसें अटक जाती हैं और वे समय की प्रतीक्षा में अवसाद की ओर बढ़ने लगते हैं। जब खबर आती है कि मुख्य परीक्षा में वैकल्पिक विषय खत्म कर दिए जाएंगे तो कम से कम हिंदी, उर्दू और संस्कृत विषय वालों की एक मौत हो जाती है, क्योंकि वे किसी तरह से अपने इन्हीं विषयों के बूते लक्ष्य तक पहुंचने का सपना देख पा रहे हैं। सवाल यह उठता है कि आखिर आयोग की कार्यशैली में इतनी अपारदर्शिता, अस्पष्टता और अनिश्चितता क्यों है? आखिर आयोग क्या साबित करना चाहता है? कभी-कभी तो लगने लगता है कि आयोग भी सरकार की राह चल रहा है। लाखों युवाओं का भविष्य दांव पर लगा है, लेकिन उसे कोई फर्क नहीं पड़ता, पड़े भी क्यों आखिर संवैधानिक शक्तियां जो उसके पास हैं। लेकिन ऐसा क्यों होता है? आयोग अपने क्रियान्वित और संभावित बदलावों के पक्ष में तमाम तकरीरें पेश करता है, लेकिन ये कुछ वैसी ही होती हैं, जैसी इस समय कांग्रेसनीत सरकार की हैं। बहुत मुमकिन है कि ये बदलाव सरकार की सोच का ही नतीजा हों, जिसके जरिए वह हिंदी भाषी क्षेत्र और हिंदी, उर्दू, संस्कृत जैसे विषयों के युवाओं को बाहर का रास्ता दिखाना चाहता हो। मनमोहन सिंह जब पहली बार प्रधानमंत्री बने थे तो उन्होंने कहा था कि भारत में सिविल सेवा परीक्षा को फ्रांस के पैटर्न पर संचालित किया जाएगा यानी 12वीं के बाद ही परीक्षा ली जाएगी और इसमें चयनित प्रतिभागियों को पांच वर्ष तक सरकारी पैसे से प्रशिक्षण दिया जाएगा। अंतिम रूप से चयनित प्रतिभागियों की नियुक्ति होगी और शेष को अन्य क्षेत्रों में भेजा दिया जाएगा। इसके पीछे उनका तर्क यह था कि सिविल सेवकों का राजनीतिकरण हो रहा है, जिससे वे अकुशल, अक्षम और भ्रष्ट बन रहे हैं। जब मनमोहन सिंह यह फार्मूला पेश कर रहे थे, उसी समय उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने अखंड प्रताप सिंह को राज्य का मुख्य सचिव बनाया था, जिन्हें आइएएस एसोसिएशन ने सबसे भ्रष्ट आइएएस बताया था। जब उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने हटाने का आदेश दिया तो भ्रष्ट नंबर दो यानी नीरजा यादव मुख्य सचिव बन गई। उन्हें भी उसी तरह से हटाया गया। आज आइएएस-आइपीएस लॉबी पूरी तरह राजनीतिक हो चुकी है। ऐसे में क्या गारंटी है कि चयन के बाद उनकी कार्यशैली में सुधार होगा ही? आयोग की वैकल्पिक विषय हटाने की दो दलीलें हैं। कोचिंग तंत्र को खत्म करना और परीक्षा में एकरूपता लाना। आयोग ने जब प्रारंभिक परीक्षा में विषय हटाकर एप्टीट्यूड टेस्ट लागू किया तो बैंक या एसएससी की क्लर्क परीक्षाओं की तैयारी कराने वाले कोचिंग संस्थान भी सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कराने लगे। सीएसएटी यानी सिविल सेवा एप्टीट्यूड टेस्ट के लागू होते ही दिल्ली, लखनऊ, इलाहाबाद, पटना, इंदौर और देहरादून जैसे शहरों में कोचिंग संस्थानों में कम से कम दो या तीन गुना वृद्धि हो गई थी। इस अव्यवस्था में युवा सबसे ज्यादा ठगा गया, क्योंकि आयोग ने मॉडल टेस्ट पेपर वेबसाइट पर नहीं डाला। कुछ समय के लिए तो लग रहा था कि आयोग इस विषय में खुद दिग्भ्रमित था कि आखिर प्रश्नों का स्वरूप कैसा होगा? इसका पूरा लाभ कोचिंग संस्थानों को मिला। इसके बाद प्रश्नपत्रों का जो स्वरूप सामने आया उससे हिंदी भाषी छात्रों को धक्का लगा और बाजी दक्षिण के लोगों तथा अंग्रेजी भाषियों के हाथ लगी। आयोग को कम से कम इतना तो बताना चाहिए कि वह इसके जरिए कौन सी एकरूपता लाया है? अब आयोग मुख्य परीक्षा में भी विषयों को खत्म कर देना चाहता है। तर्क वही कि परीक्षा में एकरूपता और कोचिंग तंत्र का समापन। कोचिंग तंत्र का समापन तो किसी स्थिति में नहीं होगा, क्योंकि देश में छात्रों और संरक्षकों में कोचिंग संस्थान ही सफलता के एकमात्र दिग्दर्शक हैं, यह मनोविज्ञान पूरी तरह से विकसित हो चुका है। आयोग के सदस्य इस जमीनी हकीकत से या तो वाकिफ नहीं है या फिर वे अनजान बने रहना चाहते हैं। दूसरा तर्क है सभी को समान अवसर मुहैया कराने का। या यों कहें कि साधारण विश्वविद्यालयों के स्नातक परास्नातक छात्र आइआइटी के छात्रों की बराबरी में जाएंगे। यह तर्कहीन बात है। क्या आयोग यह मानता है कि इन दोनों संस्थानों के छात्रों का आइक्यू बराबर है? अगर मानता है तो फिर उसकी योग्यता पर भी उंगली उठाने का साहस करना पड़ेगा। एक सामान्य स्नातक छात्र आइआइटी स्नातक से काफी पीछे होता है। खासतौर पर लॉजिकल विषयों अंग्रेजी, बायोडाइवर्सिटी, प्रौद्योगिकीय विकास, तकनीकी आदि विषयों में। ऐसे तो मानविकी ग्रुप के विषयों से स्नातक कहीं नहीं रहेंगे और दबदबा आइआइटी, आइआइएम और मेडिकल के छात्रों का होगा। पिछले कुछ समय में देखा गया है कि उत्तर भारत के ग्रामीण परिवेश के छात्र या कुछ पूर्वोत्तर राज्यों और जम्मू-कश्मीर के हिंदी साहित्य, उर्दू या संस्कृत जैसे विषय लेकर आइआइटी और आइआइएम के छात्रों से आगे रहे हैं। 2009 में जम्मू-कश्मीर से पहले आइएएस टॉपर फैजल शाह इसकी मिसाल हैं, जिन्होंने उर्दू विषय के कारण ही टॉप किया। देश में अब भी ऐसे बहुत से फैजल शाह प्रतीक्षा की पंक्ति में हैं, जिन्हें संघ लोक सेवा आयोग और सरकार खत्म कर देने पर तुली है। अंग्रेजी शासन काल में जब कोई अंग्रेज आइसीएस की परीक्षा पास कर भारत आता था तो पहले उसे हेलिबरी कॉलेज में भारतीय इतिहास और संस्कृति की शिक्षा दी जाती थी, क्योंकि अंग्रेजी हुकूमत मानती थी कि इतिहास और संस्कृति को जाने बिना बेहतर प्रशासन संभव नहीं है। अब यह मूल मंत्र नदारद हो रहा है। शायद यही कारण है कि क्षेत्रीयता, सामुदायिक संघर्ष और टकराव बढ़ते जा रहे हैं और प्रशासन समाधान ढूंढ़ने में अक्षम है। खैर, आयोग पूरी तरह से बाजारवादी मूल्यों को प्रश्रय देने पर आमादा है। वह यह आकलन करने में असमर्थ है कि बाजार अर्थव्यवस्था को चला सकता है, प्रशासन को नहीं। इस देश में अब भी परंपरागत मूल्य जिंदा हैं, जिनके संरक्षण और संवर्द्धन से ही देश का कल्याण सुनिश्चित हो सकता है। आयोग को इसे नष्ट करने का कोई हक नहीं है। बेशक, बदलाव अच्छी बात है, लेकिन बदलाव ऐसे हों जो एकरूपता के नाम पर भेदभाव करें और उन लोगों को भी अवसर प्रदान करें, जो हिंदी, संस्कृत, उर्दू या पाली जैसे विषयों के जरिये इस उच्च सेवा में अपना स्थान सुनिश्चित करना चाहते हैं।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
(साभार दैनिक जागरण)